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Monday, February 1, 2021

संगठन-बद्ध ऑफिशिअल राष्ट्रवादी बनाम और नवजागृत भारतीय मेधा

 डॉ साहेब, ऑफिशिअल राष्ट्रवादियों और वामियों में भारत को लेकर कोई ख़ास तात्विक अंतर नहीं है। मानसिक गुलामी के शिकार दोनों ही हैं क्योंकि विरासत को ये परचून की दूकान से ज्यादा नहीं समझते। यह भी कि किसी-न-किसी स्तर पर हममें से अधिकतर लोग इस गुलामी के शिकार हैं, डिग्री का फर्क जरूर हो सकता है। लेकिन किसी भी संगठन से मुक्त-चिंतन को प्रश्रय देने की आशा रखना दिवास्वप्न जैसा है। आगे की लड़ाई संगठन-बद्ध ऑफिशिअल राष्ट्रवादियों और नवजागृत भारतीय मेधा के बीच होगी न कि वामियों-राष्ट्रवादियों के।

सीताराम गोयल और कोएनराड एल्स्ट की उपेक्षा उपरोक्त स्थापना का प्रमाण है। जहाँ तक डॉ शंकर शरण की बात है, उनकी चुप्पी को सहमति मानना भूल होगी। वे बिना पूछे नहीं के बराबर बोलते हैं।

(Posted as a Comment on the FB post of Dr Tribhuwan Singh in June-July 2020)

Wednesday, September 23, 2020

KWAN और UBT के रिश्ते

 सलमान खान के वकील कह रहे हैं कि Talent Management कंपनी KWAN से सलमान खान की कंपनी UBT का कोई रिश्ता नहीं है। लेकिन 8 नवंबर 2018 से 23 मई 2019 के बीच छह प्रतिष्ठित वेबसाइटों पर प्रकाशित खबरों के अनुसार KWAN में सलमान खान की कंपनी UBT ने रणनीतिक निवेश किया। ये दोनों कम्पनियाँ आजकल चर्चा में हैं क्योंकि #SSR हत्या मामले में ड्रग से जुड़े ऐंगल को लेकर NCB ने KWAN की निदेशक जया शाह से लगातार पूछताछ की है। मधुर मॉण्टेना और ध्रुव (CEO) भी इससे जुड़े हैं। कहा जा रहा है कि 'उड़ता पंजाब' फिल्म के निर्माता मॉण्टेना थे। उपरोक्त वेबसाइटों के लिंक हैं: 

1. 

https://www.deccanchronicle.com/entertainment/bollywood/081118/salmans-uniworld-being-talented-takes-strategic-ownership-in-kwans-h.html 

8.11.2018 


2. https://m.dailyhunt.in/news/india/english/pennews-epaper-pennws/salman+khan+s+ubt+lands+strategic+ownership+in+kwan-newsid-101115914?listname=topicsList&index=0&topicIndex=0&mode=pwa 

8.11. 2018 


3. http://www.uniindia.com/salman-khan-s-ubt-lands-strategic-ownership-in-kwan/entertainment/news/1400599.html 

9.11.2018 


4. 

https://m-english.webdunia.com/article/bollywood-masala/salman-khans-ubt-lands-strategic-ownership-in-kwan-118110900008_1.html?amp=1 

9.11.2018 


5.  https://realtime.rediff.com/news/india/Salman-Khans-UBT-lands-strategic-ownership-in-Kwan/b1856fdf5c21a73c 

10.11.2018 


6. https://www.freepressjournal.in/entertainment/salman-khans-talent-company-uniworld-being-talented-takes-strategic-ownership-in-kwans-holding-company 

23.5.2019

Thursday, September 17, 2020

मोदी जी के जन्मदिन के बहाने

मोदी को लोग क्यों इतना पसंद करते हैं, इसका उत्तर इसमें है कि बाकियों में पसंद करने के लायक़ क्या-क्या है?

इस देश को इसके नायक होने का दावा करनेवालों ने इतना छला कि  शाहरुख़ ख़ान,अमिताभ बच्चन और तेंदुलकर जैसे लोग नायक-महानायक-भगवान कहे जाने लगे।

*

नेहरू, इन्दिरा, जयप्रकाश नारायण, लालू, मुलायम, मायावती, ममता, जयललिता, अन्ना हज़ारे, केजरीवाल--- किसिम-किसिम के नकलची, आत्मकेंद्रित,  बेऔकाद, भ्रष्ट, अपराधी और देशबेंचूं टाइप जंतुओं को लोगों ने नायक बनाया और इतना धोखा मिला कि मायानगरी बॉलीवुड और क्रिकेट की शरण में जाने को लोग मजबूर हो गए।

*

लोगों को जीने के लिए आशा चाहिए, इसलिए वे धोखा खाते रहे और भगवान पर भगवान(क्रिकेट का भगवान तेंदुलकर), नायक पर नायक बनाते रहे। यह मजबूरी से पैदा हुई सर्जनात्मकता है लेकिन फिर भी है बहुत-बहुत जरूरी। इस मजबूरी का फायदा उठाकर खलनायकों ने अपने को पुनर्परिभाषित कर लिया और खुद को नायक तथा नायकत्व की सम्भावना वाले लोगों को खलनायक घोषित करने लगे। इसी का उदाहरण है 2002 से 2014 तक मोदी को बिना प्रमाण के 'नरसंहारी' और 'कसाई' जैसे विशेषणों से नवाज़ना।

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इस बीच मोबाइल-इंटरनेट-सोशल मीडिया ने सूचना पर से टीवी-अखबारों के एकाधिपत्य को खत्म कर दिया और 12 सालों तक खलनायक बनाए गए मोदी कानून की अदालत के साथ-साथ जनता की अदालत से न केवल बाईज़्ज़त बरी हुए बल्कि लोगों को उनमें आशा का विहान दिखा। इस प्रकार वे महानायक, देवता (देनेवाला) और भगवान ( भाग्य को बनानेवाला) सब इकट्ठे बना दिए गए। 

*

70 सालों की प्रतीक्षा के बाद ऐसा हुआ है, इसलिए भक्तिभाव गहरा है। खुद के बनाए भगवान और महानायक पर संदेह खुदपर संदेह जैसा है। इस प्रकार राष्ट्रीय महत्त्व के मुद्दों पर मोदी से इतर कोई राय जनता यानी भक्तों के लिए विश्वसनीय नहीं है।


 2002 से 2014 तक के मोदी राजनीतिशास्त्र के दायरे की सख्सियत हैं लेकिन 2014 से अबतक के मोदी को तो मनोविज्ञान के बिना समझा ही नहीं जा सकता। यहीं पर मोदी-विरोधी मात खा रहे हैं क्योंकि वे मोदी को सिर्फ राजनीति के चश्मे से देख रहे हैं जबकि जनता मोदी में एक साथ चन्द्रगुप्त, चाणक्य, शंकराचार्य, राणा प्रताप, शिवाजी, नेताजी और भगवान राम को देख रही है। 

*

"हर हर मोदी घर घर मोदी" कोरा नारा नहीं है। यह एक मनोवैज्ञानिक हकीकत है। मोदी इस बात को समझते हैं और खुद को महामानव (सुपरमैन) साबित करने में भी लगे रहते हैं: कितना कम सोते हैं!इतने कम कम समय में इतने देशों की यात्रा!इस्राइल जानेवाले पहले प्रधानमंत्री!नोटबंदी के बाद जीएसटी! बाप रे भरसक विरोधी सब कंस की तरह मोदी के पीछे पड़ा है!

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मोदी की काट सिर्फ मोदी हैं या उनके जैसा कोई और व्यक्ति, ऐसी-वैसी आलोचना तो उनके लिए संजीवनी का ही काम करेगी और कर रही है (मोदी के सबसे प्रभावकारी प्रचारक भक्त या संघी नहीं बल्कि सेकुलर-वामी-जेहादी लोग हैं जो भारतीय मनीषा पर अहर्निश पर निराधार प्रहार करते रहते हैं)। विश्वास न हो तो बस चार  बार जोर से साँस लीजिए-छोड़िए और खुद से पूछिए:


●कोई और नेता अबतक नोटबंदी क्यों नहीं लागू कर पाया? 

●जीएसटी को मोदी का इंतजार क्यों था? 

●ऐसी सर्जिकल स्ट्राइक पहले हुई थी क्या?

●विश्वपटल पर किसी भारतीय नेता को ऐसी इज़्ज़त मिली क्या? 

●पिछले हजार सालों में हिन्दुस्तानी मन इतना बोल्ड, आत्मविश्वासी और आशावादी हुआ क्या? 

●परम्परा के सर्वोत्तम तत्वों की वापसी को लेकर कभी इतना बेबाक विमर्श हुआ क्या?

●आत्महीनता और आत्मनिर्वासन के शिकार हिन्दुस्तानियों में आत्मगौरव और राष्ट्रगौरव का ऐसा संचार हुआ क्या?

●चीन को कभी भारत ने धौंसाया क्या?

●कश्मीर में जिहाद-विरोधी अभियान में सेना को ऐसी खुली छूट मिली क्या?

●निजी उद्यमिता को कभी इतना सम्मान मिला क्या?

●पश्चिम की बिना अकल नकल करनेवालों इतनी खुली चुनौती मिली क्या?

●जीवन से जुड़ी हर चीज को पुनर्परिभाषित करने का ऐसा सघन और स्वतःस्फूर्त आन्दोलन चला क्या?

● राम-कृष्ण-शंकर और नानक-कबीर-रैदास-रहीम-रसखान-दारा शिकोह जैसों का देसी पुनर्पाठ हुआ क्या?


∆सेकुलरवाद से लेकर राष्ट्रवाद तक, 

∆मजहब-दीन-रिलिजन से लेकर धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष तक, 

∆बाजारवाद से लेकर समाजवाद तक, 

∆आस्था से लेकर सत्यम्-शिवम्-सुन्दरम् तक, 

∆ऋषि-मुनि-गुरु-ब्रह्मर्षि से लेकर देवी-देवता-भगवान तक, 

∆ईशा-पैग़म्बर से लेकर ईश्वर-अल्ला-गॉड तक और

∆भक्त-कम्बख़्त- मानसिक गुलाम से लेकर बुद्धिजीवी-बुद्धिविलासी-बुद्धिपिशाच-बुद्धियोद्धा तक ----


कभी देसी दृष्टि से इतनी व्यापक और घनघोर बहसें हुईं क्या?

*

इसी को भारतीय नवजागरण कहते हैं जो 

भक्तिआंदोलन से सीधे जुड़ता है 

लेकिन उससे बहुत व्यापक और गहरा है 

क्योंकि इसमें करोड़ों-करोड़ लोग शामिल हैं 

और इसके मूल में गंगाजमुनी दास्यभाव की समरसता नहीं है, हो ही नहीं सकती। इसका केंद्रीय तत्त्व है सार्वभौमिक साम्यभाव की समरसता 

जिसके दर्शन कबीर जैसे इक्के-दुक्के संतों को छोड़ भक्तिआंदोलन में भी नहीं होते। 

एक लंबे अंतराल वाले भाटे के बाद ज्वार का यह दौर आया है --- भारत की परंपरा के सर्वोत्तम के महासागर में  ज्वार का दौर। 

सैकड़ों साल की अमावस्या के बाद शुक्लपक्ष आया है, जिसमें चाँद डूबेगा नहीं। 

लेकिन यह चाँद शुद्धमना भक्तों को जरा पहले दिख गया है, कमबख़्त गुलाम अभी भी राहु-केतु वाले काले दाग़ से चिपके हैं। तभी तो कबीरदास कह गए:


'माया के गुलाम गिदर का जाने बंदगी'?


उधर मोदी के रणनीतिकार सोचते होंगे:


दाग़ अच्छे हैं! 

#ChandrakantPSingh

(2 जुलाई 2017 की पोस्ट, चित्र 5 अगस्त 2020 का।)

Thursday, August 27, 2020

American Nationalim on the Rise: Trump

 I agree with what President Trump said:

Muslims who want to live under Islamic Sharia law were told on Wednesday to get out of AMERICA, as the government targeted radicals in a bid to head off potential terror attacks

Separately, TRUMP angered some American Muslims on Wednesday by saying he supported spy agencies monitoring the nation's mosques.

Quote:

'IMMIGRANTS, NOT AMERICANS, MUST ADAPT... Take It Or Leave It. I am tired of this nation worrying about whether we are offending some individual or their culture. Since the terrorist attacks, we have experienced a surge in patriotism by the majority of Americans.

'This culture has been developed over two centuries of struggles, trials and victories by millions of men and women who have sought freedom.

'We speak ENGLISH, not Spanish, Lebanese, Arabic, Chinese, Japanese, Russian, or any other language. Therefore, if you wish to become part of our society, learn the language!

'Most Americans believe in God. This is not some Christian, right wing, political push, but a fact, because Christian men and women, on Christian principles, founded this nation, and this is clearly documented. It is certainly appropriate to display it on the walls of our schools.

If God offends you, then I suggest you consider another part of the world as your new home, because God is part of our culture.'

'We will accept your beliefs, and will not question why. All we ask is that you accept ours, and live in harmony and peaceful enjoyment with us.

'This is OUR COUNTRY, OUR LAND, and OUR LIFESTYLE, and we will allow you every opportunity to enjoy all this. But once you are done complaining, whining, and griping about Our Flag, Our Pledge, Our Christian beliefs, or Our Way of Life, I highly encourage you take advantage of one other great AMERICAN freedom, 'THE RIGHT TO LEAVE'.

'If you aren't happy here then LEAVE’. We didn't force you to come here. You asked to be here. So accept the country that accepted you.

(SOURCE: MR SATYADEO RAI on WhatsApp)



NOTE:

*IF we circulate this amongst ourselves in INDIA, WE will find the courage to start speaking and voicing the same truths*.

If you agree, please SEND THIS ON and ON, to as many people as you know....and for those who disagree move to a third world country and live there. "


#Trump #America #USA #Nationalism 

Wednesday, August 26, 2020

#JNUADDA फिर से Flipkart पर उपलब्ध है

 आपको याद दिलाते चलें कि #JNU समेत अन्य उच्च शिक्षा संस्थानों के भारत-विरोधी और हिंदू-द्वेषी #DNA की पोलखोल करती हिंदी पुस्तक #JNUAdda अब फ्लिपकार्ट पर उपलब्ध है, वह भी दूसरे प्रिंट के छपे मूल्य (300 सौ रु) से आधे दाम (150 रु) पर। यह सुविधा शुरू के सिर्फ 200 आर्डरों तक सीमित रहेगी। 

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सोमवार (24 अगस्त 2020) को पूर्वाह्न 11 बजे तक 40 प्रतियाँ के ऑर्डर बुक हो चुके थे लेकिन उसी दिन शाम को फ्लिपकार्ट ने किताब का ऑर्डर बुक करना बंद कर दिया। अपनी वेबसाइट के सर्च इंजन से भी किताब को हटा दिया। कारण बताया #PendingOrder. आपमें से जिसने भी 24 अगस्त की शाम से 26 अगस्त की शाम 4 बजे तक किताब ऑर्डर करने की कोशिश की होगी उसे #UNAVAILABLE की सूचना मिली होगी। 

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हमें संदेह हुआ कि #Blumsbury द्वारा प्रकाशित पुस्तक #DelhiRiots2020 : Untold Story की तरह कहीं 'जेएनयू अड्डा' को भी DE-PLATFORM तो नहीं किया जा रहा? इसलिए विक्रेता ने फ्लिपकार्ट से लगातार सम्पर्क बनाये रखा और बताया कि Pending Order की वजह वह नहीं है। मैंने भी ईमेल किया। अन्य पाठकों ने भी लिखा। सम्भवत: यही कारण है कि आज (26 अगस्त 2020) लगभग 5 बजे शाम विक्रेता को सूचित किया गया कि 'जेएनयू अड्डा' के Pending Order क्लियर कर दिए गए हैं, इसलिए किताब की बुकिंग पुन: शुरू हो गई है। आपको हुई इस असुविधा के लिए हमें खेद है। फ्लिपकार्ट का लिंक:


http://dl.flipkart.com/dl/jnu-adda/p/itmf6bf9xcgs6jcg?pid=9788193499245&cmpid=product.share.pp


जेएनयू में भारत की बर्बादी के नारों से लेकर #CAA -विरोधी शहीनबाग चक्काजाम तक, दिल्ली- बेंगलुरु दंगों से लेकर 370/35A के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय मुहिम तक, राममंदिर भूमिपूजन विरोध से लेकर बॉलिवुड में माफिया राज तक---किसी भी घटना को डिकोड करने में यह पुस्तक मददगार साबित होगी। इसका अप्रोच है: डाटा-निसृत नैरेटिव न कि नैरेटिव-निसृत डाटा संकलन या डाटा-विरोधी नैरेटिव। 

मूल किताब सिर्फ 73 पृष्ठों की है। इसके अलावा 55 पृष्ठों में दस्तावेज़ी चित्र, संदर्भ, टिप्पणियाँ और परिशिष्ट हैं जिनमें 2010 से 2018 तक जेएनयू कैंपस में इस्तेमाल हुए पोस्टर व पर्चे भी शामिल हैंं। उन मित्रों से मैं प्रकाशक की तरफ से क्षमा माँगता हूँ जिन्हें इस पुस्तक के लिए साल भर से अधिक प्रतीक्षा करनी पड़ी है।

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#JNUAddaAuthor #JNU_Adda #JNUAddaBook #JNUAdda_Book #जेएनयू_अड्डा #जेएनयूअड्डा #जेएनयू #जेएनयू_अड्डा_पुस्तक #ChandrakantPSingh #ProfCPSingh_JNUAdda

#JNUAdda on FLIPCART

 #JNUAdda is now available on FLIPCART at half the printed price (Rs 300) for the first 200 orders. A must for those interested in decoding not only #JNU but also the Higher Education System that produces the India-hating copy-cats mostly.

https://t.co/BtyA6USgNm 

#जेएनयू_अड्डा https://t.co/mEvJ8BTzxk

#JNUADDA 

Sunday, August 9, 2020

जिन्ना, गाँधी और आज का संघ

जिन्ना पोर्क खाते थे लेकिन मुसलमानों के पक्के ईमानदार वकील थे। गाँधी खुद को सनातनी हिंदू कहते थे लेकिन 1920-22 के खिलाफत आंदोलन और 1946-48 में भारत-विभाजन के दौरान जिहादी हितों की रक्षा करते एक हिंदूयोद्धा की गोली का शिकार हुए। उनका व्यवहार वैसे ही था जैसे बलात्कार पीड़ित समुदाय का कोई वकील बलात्कारी से ही बलात्कार-पीड़िताओं के चरित्र प्रमाण-पत्र लेने की बात करने लग जाए! गाँधी के इस हिंदू-घाती आचरण की प्रतिध्वनि है संघ-स्थापित 'मुस्लिम मंच'। सुप्रीम कोर्ट में 

 राममंदिर मामले में हिंदू पक्ष की जीत पर हिंदुओं से खुशी न मनाने की अपील तो उससे भी ज्यादा हिंदू-घाती उदाहरण है क्योंकि यह जीत  सदियों की इस्लामी बर्बरता पर लाखों हिंदू बलिदानियों के संघर्ष की विजय थी।

इससे यह भी जाहिर होता है कि  सरकारी राष्ट्रवादी गिरोह सनातन की पुनर्प्रतिष्ठा की राह में सबसे बड़ी बाधा साबित होगा, कम्युनिस्ट-जिहादी-मिशनरी गिरोह से भी ज्यादा। आश्चर्य नहीं अगर ये दोनों गिरोह धर्मनिष्ठ हिंदू योद्धाओं के विरुद्ध हाथ भी मिला लें।